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Guru Nanak Jayanti

Guru Nanak Jayanti

कार्तिक पूर्णिमा के दिन क्यों मनाई जाती है गुरु नानक जयंती? जानिए इसके पीछे की वजह : –

सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी का जन्म 1469 में कार्तिक पूर्णिमा के दिन हुआ था। उनका जन्म स्थान वर्तमान पाकिस्तान में स्थित ननकाना साहिब (जो उस समय पंजाब, भारत का हिस्सा था) था। वे एक महान संत, विचारक, समाज सुधारक और धार्मिक गुरु थे। उनका जीवन दर्शन और उपदेश आज भी सिख धर्म के मूल सिद्धांतों के रूप में माना जाता है।

गुरु नानक देव जी ने समाज में फैली हुई जातिवाद, धर्म के नाम पर भेदभाव और अंधविश्वास के खिलाफ आवाज उठाई। उनका संदेश था कि भगवान एक है, और सभी इंसान बराबर हैं। उन्होंने “ईश्वर एक है” (One God) का सिद्धांत दिया और सभी को एकता, भाईचारे और धार्मिक सहिष्णुता की शिक्षा दी।

गुरु नानक ने अपने जीवन में कई यात्राएँ कीं, जिन्हें ‘उदासियाँ’ कहा जाता है। इन यात्राओं के दौरान उन्होंने विभिन्न धर्मों के अनुयायियों से मिलकर उन्हें एकजुटता और प्रेम का संदेश दिया। उन्होंने मानवता और सेवा का आदर्श प्रस्तुत किया। उनके द्वारा की गई कविताएँ, जिनमें शबद और Gurbani शामिल हैं, आज भी सिखों के धार्मिक ग्रंथ ‘Guru Granth Sahib’ का हिस्सा हैं।

गुरु नानक देव जी ने 1539 में करतारपुर साहिब (जो पाकिस्तान में स्थित है) में अपनी अंतिम सांस ली। उनके उपदेश आज भी लाखों सिखों के जीवन का आधार हैं और उनका प्रभाव केवल सिख समुदाय तक ही सीमित नहीं है, बल्कि पूरी दुनिया में फैला हुआ है।

 

Guru Nanak Jayanti परिचय

Guru Nanak  देव जी का जन्म 1469 में पंजाब के तलवंडी गाँव (अब पाकिस्तान में ननकाना साहिब) में हुआ था। वे एक ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए थे, और उनका नाम मेहता कालूचन्द खत्री और तृप्ता देवी का पुत्र था। बचपन से ही वे सांसारिक विषयों में रुचि नहीं रखते थे, और अपनी आध्यात्मिक खोज में लगे रहते थे।

गुरु नानक का विवाह 16 वर्ष की आयु में सुलक्खनी नामक कन्या से हुआ था, और उन्हें दो पुत्र, श्रीचन्द और लखमीदास थे। 32 वर्ष की उम्र में नानक ने परिवार का भार अपने श्वसुर पर छोड़कर यात्रा पर निकलने का निर्णय लिया। इस यात्रा के दौरान वे समाज में सुधार और धार्मिक जागरूकता फैलाते गए।

नानक के दर्शन और शिक्षाएँ आज भी सिख धर्म के मूल सिद्धांत हैं।

उदासियाँ

गुरु नानक देव जी की चार प्रमुख यात्राएँ, जिन्हें ‘उदासियाँ’ कहा जाता है, उनकी शिक्षाओं को फैलाने और एकता, समानता, और ईश्वर के प्रति समर्पण का संदेश देने के लिए की गई थीं।

पहली उदासी (1500-1506): गुरु नानक ने पूर्वी भारत के प्रमुख स्थानों जैसे सुल्तानपुर, पानीपत, हरिद्वार, बनारस, पटना, असम और ढाका का दौरा किया।

दूसरी उदासी (1506-1513): दक्षिण भारत की यात्रा की, जिसमें राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और श्रीलंका शामिल थे।

तीसरी उदासी (1514-1518): गुरु नानक ने उत्तर की ओर हिमालय, तिब्बत, कश्मीर और ताशकंद की यात्रा की।

चौथी उदासी (1519-1521): उन्होंने मध्य पूर्व, अफगानिस्तान, मक्का और मदीना की यात्रा की, जहाँ उन्होंने अंतर-धार्मिक चर्चाएँ कीं।

इन यात्राओं ने गुरु नानक के संदेश को व्यापक रूप से फैलाया और उनका जीवन आज भी लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

विवाद

गुरु नानक देव जी की यात्राओं के बारे में कई विवाद हैं, खासकर उनके भौगोलिक विवरण को लेकर। प्रारंभिक सिख ग्रंथों में इन यात्राओं का कोई उल्लेख नहीं है, और ये कहानियाँ गुरु नानक की मृत्यु के बाद के समय में जीवनी संबंधी खातों में विकसित होती गईं। 19वीं शताब्दी की जनमसाखी में इन यात्राओं का विवरण मिलता है, लेकिन इसमें बगदाद की यात्रा का उल्लेख नहीं है।

कुछ लोग बगदाद पत्थर को गुरु नानक की यात्रा का प्रमाण मानते हैं, जबकि अन्य इसे 19वीं शताब्दी का शिलालेख मानते हैं और इसके आधार पर गुरु नानक के बगदाद जाने के दावे को खारिज करते हैं। इसके अलावा, गुरु नानक की यात्रा की कहानियाँ सूफी तज़करों और हिंदू महाकाव्यों से भी प्रभावित हैं।

इन विवादों के कारण, गुरु नानक की यात्राओं के बारे में प्रमाणों और उनकी प्रामाणिकता पर सवाल उठाए जाते हैं।

गुरु नानक देव जी का दर्शन

गुरु नानक देव जी का दर्शन एक परमेश्वरवाद पर आधारित था। उन्होंने मूर्तिपूजा की आलोचना की और केवल एक ईश्वर की उपासना को बढ़ावा दिया। नानक ने हिंदू धर्म के सुधार के लिए कार्य किए और समाजिक, राजनीतिक, और धार्मिक स्थितियों पर भी दृष्टि डाली। वे नारी के सम्मान के पक्षधर थे और संत साहित्य में उनका योगदान महत्वपूर्ण है।

हिंदी साहित्य से संबंध

गुरु नानक को भक्तिकाव्य के अंतर्गत रखा जाता है। वे निर्गुण धारा के कवि थे, और उनकी रचनाएँ हिंदी साहित्य के भक्तिकाल में शामिल हैं। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने लिखा कि गुरु नानक के भजन संकलित होकर ‘ग्रंथ साहिब’ में शामिल किए गए हैं।

मृत्यु

गुरु नानक की मृत्यु 22 सितंबर 1539 को करतारपुर में हुई। उन्होंने अपने शिष्य भाई लहना को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया, जो बाद में गुरु अंगद देव के नाम से प्रसिद्ध हुए।

कविताएँ और रचनाएँ

गुरु नानक ने बहती नीर भाषा में कई कविताएँ और भजन लिखे, जिनमें फारसी, पंजाबी, सिंधी, और अरबी शब्दों का मिश्रण था। उनकी प्रमुख रचनाओं में जपजी, सिध गोष्ट, सोहिला, आसा दी वार आदि शामिल हैं।

प्रमुख गुरुद्वारे

गुरुद्वारा कन्ध साहिब (बटाला) – गुरु नानक का विवाह यहीं हुआ था।
गुरुद्वारा हाट साहिब (सुल्तानपुर लोधी) – यहाँ गुरु नानक ने शाही भण्डार के देखरेख की नौकरी शुरू की थी।
गुरुद्वारा बेर साहिब (सुल्तानपुर लोधी) – यहाँ गुरु नानक ने तीन दिन तक नदी में डुबकी लगाने के बाद ‘एक ओंकार सतिनाम’ का उद्घोष किया था।
गुरुद्वारा अचल साहिब (गुरुदासपुर) – यहाँ नानकदेव ने योगी भांगरनाथ से धार्मिक वाद-विवाद किया था।
गुरुद्वारा डेरा बाबा नानक (गुरुदासपुर) – यहाँ गुरु नानक ने अपने अंतिम समय में साधना की और 1539 में परम ज्योति में विलीन हो गए।

500वें प्रकाश पर्व का आयोजन

गुरु नानक के 550वें प्रकाश पर्व के अवसर पर, 9 नवम्बर 2019 को, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान स्थित करतारपुर साहिब के गुरुद्वारे को भारत से जोड़ने वाले गलियारे का उद्घाटन किया।

For more knowledge visit here – Guru Nanak – Wikipedia

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